ओंकार कश्यप
पढने का हौसला ऐसा की वो अपने ही संतानों से पढाई में आगे निकलने की होड़ कर रही है। 1988 में मैट्रिक पास करने के बाद पढाई छुट गई थी। 22 साल बाद फिर पढना शुरू किया तो इंटर में काॅलेज टाॅप कर गई। हाल ही में आए नेट के रिजल्ट में 47 साल की मां अपने से 26 साल छोटी बेटी से ज्यादा नंबर ले आकर उसे पीछे छोड़ दिया। यह कहानी 47 वर्ष की एक ऐसी महिला की है जो अपने बेटे-बेटी की क्लासमेट, बैचमेट और कंपेटिटर बनी है। उन्हें टफ टक्कर दे रही है। कभी साथ में बड़े संस्थानों में इंट्रेंस देकर सफलता हासिल करती है तो कभी नेट की परीक्षा में बेटी से ज्यादा नंबर लाकर बेटी को पीछे छोड़ देती है।
हिसुआ के तेली टोला में रहने वाले नरेश प्रसाद की पत्नी ने बेटे के साथ एमए के लिए बीएचयू में इंट्रेंस दिया। सफलता हांसिल की। अब उन्होनें नेट में भी सफलता हासिल कर ली और इस परीक्षा में उन्हे बेटी से भी ज्यादा अंक मिले हैं। मैट्रिक की परीक्षा उन्होंने 1988 में ही पास कर ली थी लेकिन इसके कुछ ही दिनों बाद उनकी शादी हो गई थी और उनकी पढाई आगे नहीं बढ सकी। घर की माली हालत ठीक न होने की वजह से बाल-बच्चे ही को ही पढाना मुश्किल हो रहा था। लेकिन जिम्मेदारियों की बोझ पड़ने के बाद भी पढाई की भूख नहीं मिटी। मैट्रिक परीक्षा पास करने के 24 साल बाद भी उन्होंने ज्ञान अर्जित करने की लालसा को जिंदा रखा और 2010 में फिर से काॅलेज की पढाई शुरू कर दी।
काॅलेज शिक्षक के बढाए हौसले ने बदल दी जिंदगी
जोश और हिम्मत देने वाली कितनी ही कहावतों को हम अक्सर सुनते और कहते हैं। लेकिन असल में ऐसे कितने लोग हैं जो वाकई ही उन कहावतों को सच कर दिखाते हैं। जीवन के कई ऐसे मोड़ आतें है जो हमारी जिंदगी बदल देती है। ऐसा ही माधवी के साथ भी हुआ। 2010 में माधवी की भेंट टीएस काॅलेज में हिन्दी के प्राध्यापक डाॅ मनुजी राॅय से हुई। डाॅ राय ने उन्हें फिर से पढाई शुरू करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद उनका हौसला दुगना हो गया और कुछ दिन बाद ही इंटर काॅलेज में नामांकन ले लिया। इसके बाद से अबतक नवादा जिले के हिसुआ की रहने वाली महिला माधवी 47 साल की उम्र में भी ज्ञान अर्जित करने की भूख को पूरा करने में लगी है।
2012 में लिया काॅलेज में दाखिला
माधवी ने 1988 में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इसके बाद शादी हो गई। बच्चे बड़े हुए तो जिम्मेंदारियां बढ गई। तेईस साल बाद, वह फिर से अपनी पढ़ाई शुरू की। 2012 में इंटर का परिणाम आया तो उन्होंने 2012 में टीएस काॅलेज में द काॅलेज टाॅप कर गई। इसके बाद उन्होंने टीएस काॅलेज अपनी स्नातक की डिग्री पूरी की। वह यहीं नहीं रुकीं, वह आगे की पढाई के लिए बीएचयू कूंच कर गई। वहां से एमएम की पढाई पूरी करने के बाद अब डाॅक्टरेट के लिए प्रयास कर रहीं हैं।नौकरी की चिंता नहीं, ज्ञान अर्जन की भूख इसी साल उन्होंने दुरूह माने जाने वाले नेट का एक्जाम क्वालिफाई किया है। अभी वे बीएचयू में डाॅक्टरेट की डिग्री के लिए नामांकन लेने बीएचयू बनारस में है। माधवी को नौकरी मिलेगी या नहीं इसकी कोई चिंता नहीं है वे हर हाल में 60 साल से पहले अधिक से अधिक ज्ञान अर्जित कर लेना चाहती हैं।
पढ़ाई के प्रति कभी कम नहीं हुआ लगाव
उनके पुत्र शिवाजी बताते हैं कि मां हर समय पढना चाहती हैं। हमलोगों के घर की स्थिति अच्छी नहीं है। जब हमने इंटर की परीक्षा दी और अच्छे नंबर आए तो इसके बाद 2010 में मां ने घर के बगल के ही डीडीएम इंटर काॅलेज में नामांकन लिया और काॅलेज टाॅप हुई। इसके बाद टीएस काॅलेज से हिन्दी आॅनर्स का कोर्स पूरा किया। इसके बाद हमने और हमारी मां ने एक साथ एमएम में एडमिशन के लिए बीएचयू का इंट्रेंस दिया। मां को इंट्रेस एक्जाम जेनरल में 13वां तथा महिला वर्ग में 8वां स्थान प्राप्त हुआ। वह हमेशा एक आजीवन शिक्षार्थी रहीं हैं। पापा भी सहयोग करते हैं। उनकी सफलता और हौसले से हमसब भी उत्साहित हैं। सीखने और शिक्षा के लिए उनकी इच्छा एक पारिवारिक परंपरा बन गई।
परिवार के चार सदस्यों में से तीन प्रोफसर बनने की कतार में
हिसुआ अंदर बजार में नरेश प्रसाद कबाड़ी का दुकान चलाते हैं। उनकी पत्नी माधवी, बेटे शिवा जी और बेटी उमा भारती तीनों ने नेट की परीक्षा में सफलता हासिल कर ली है। बेटे और बेटियों ने तो दो-दो बार नेट क्वालिफाई कर लिया है। नरेश के घर में मेधाशक्ति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी बेटी उमा भारती अभी बीएचयू से एमए कर ही रही है लेकिन नेट की परीक्षा निकाल चुकी है। नरेश के बेटे शिवाजी ने नेट की परीक्षा में आॅल इंडिया में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। इसके लिए उन्हें श्यामा प्रसाद मुखर्जी अवार्ड भी मिल चुका है।





















































































































